ख़ामोशी से बीखरना आ गया है, हमें अब खुद उजड़ना आ गया है, कीसी को बेवफा कहते नहीं हम, हमें भी अब बदलना आ गया है
कीसी की याद में रोते नहीं हम हमें चुपचाप जलना आ गया है गुलाबों को तुम अपने पास ही रखो हमें कांटों पे चलना आ गया है
समय नूर को बेनूर कर देता है, छोटे से जख्म को नासूर कर देता है, कौन चाहता है अपनों से दूर रहना, पर समय सबको मजबूर कर देता है
हमें सीने से लगाकर हमारी सारी कसक दूर कर दो, हम सीर्फ तुम्हारे हो जाऐ हमें इतना मजबूर कर दो
अपनी कलम से दील से दील तक की बात करते हो सीधे सीधे कह क्यों नहीं देते हम से मोहबत करते हो
ये ज़रूरी नहीं है की हर बात पर तुम मेरा कहा मानो, दहलीज पर रख दी है चाहत और अब आगे तुम जानो
हम से न हो सकेगी मोहबत की नुमाइश, बस इतना जानते है तुम्हे चाहते है हम
घायल कर के मुझे उसने पूछा करोगे क्या फीर मोहबत मुझसे, लहू-लहू था दील मेरा मगर होंठों ने कहा बेइंतहा-बेइंतहा
बड़ा आदमी वह है जो अपने पास बैठे आदमी को छोटा महसूस ना होने दे
मीठा झूठ बोलने से अछा है कड़वा सच बोला जाए.. इससे आपको सचे दुश्मन जरूर मीलेंगे लेकीन झूठे लोग नहीं!
सारी दुनिया कहती है हार मान लो लेकीन दील धीरे से कहता है एक बार और कोशीश कर तू जरूर कर सकता है!!
नहीं मांगता ऐ खुदा की जीदगी सौ साल की दे दे भले चंद लम्हों की लेकिन कमाल की दें….