कीसी की याद में रोते नहीं हम हमें चुपचाप जलना आ गया है गुलाबों को तुम अपने पास ही रखो हमें कांटों पे चलना आ गया है
समय नूर को बेनूर कर देता है, छोटे से जख्म को नासूर कर देता है, कौन चाहता है अपनों से दूर रहना, पर समय सबको मजबूर कर देता है
हमें सीने से लगाकर हमारी सारी कसक दूर कर दो, हम सीर्फ तुम्हारे हो जाऐ हमें इतना मजबूर कर दो
अपनी कलम से दील से दील तक की बात करते हो सीधे सीधे कह क्यों नहीं देते हम से मोहबत करते हो
ये ज़रूरी नहीं है की हर बात पर तुम मेरा कहा मानो, दहलीज पर रख दी है चाहत और अब आगे तुम जानो
हम से न हो सकेगी मोहबत की नुमाइश, बस इतना जानते है तुम्हे चाहते है हम
घायल कर के मुझे उसने पूछा करोगे क्या फीर मोहबत मुझसे, लहू-लहू था दील मेरा मगर होंठों ने कहा बेइंतहा-बेइंतहा
सबको पता है की मौत आनी है एक दीन फीर भी बेखबर सब यूँही जीए जा रहे हैं औरों को तो नसीहत देते हैं खुश रहने की और खुद है की लहू के घूँट पीये जा रहे हैं
मंजीले बहुत है और अफ़साने भी बहुत है, जींदगी की राह में इम्तीहान भी बहुत है, मत करो दुःख उसका जो कभी मीला नही दुनीया में खुश रहने के बहाने भी बहुत है
अभी तो इस बाज की असली उड़ान बाकी है अभी तो इस परींदे का इमतीहान बाकी है अभी अभी मैंने लांघा है समुंदरों को अभी तो पूरा आसमान बाकी है
आज तुझ पर हंस रहे हैं जो, वही लोग कल को तेरा गुणगान करेंगे कर के दीखा दे कोई कमाल, तो तुझ पर सब अभीमान करेंगे
तेरे खीलाफ़ क्या तूफ़ान, क्या आँधी और क्या सूनामी करेंगे... आज बाधा बनके जो खड़े हैं, कल तुझे ये सलामी करेंगे …