मैंने हिसाब में रहने वाले लोगों को बेहिसाब होते देखा है मैंने लोगों को बदलते नहीं बे-नकाब होते देखा है.
नाज़ुक लगते थे जो हसीन लोग … वास्ता पड़ा तो पत्थर के निकले।
आज कल लोग याद करना भूल जाते है लेकिन हिसाब लगाना नहीं भूलते
इंसान तो हर घर में पैदा होता है पर इंसानीयत कहीं-कहीं ही जनम लेती है।
रास्ता सही होना चाहिए क्योंकि कभी कभी मंज़िल रास्तों में मिल जाती है
दवा जब असर ना करे, तो नज़रें उतारती है माँ ज़नाब, ये हार कहाँ मानती है
क्या खूब मजबूरीयां थी मेरी भी अपनी ख़ुशी को छोड़ दीया उसे खुश देखने के लीए
जो कभी लीपट जाती थी मुझसे बादलों के गरज़ने पर, आज वो बादलों से भी ज्यादा गरजती है मुझपर
कुछ ही देर की खामोशी है फीर कानों में शोर आएगा तुम्हारा तो सीर्फ वक्त है हमारा दौर आएगा.
जहाँ उम्मीद नहीं होती, वहां तकलीफ की कोई गुंजाइश भी नहीं होती
एक दीन अपनी भी एन्ट्री शेर जैसी होगी.. जब शोर कम और खौफ ज्यादा होगा
दहशत हो तो शेर जैसी वरना खौफ तो गली के कुते भी पैदा कर देते है