कितनी झूठी होती हैं,
मुहब्बत की कसमें
देखो तुम भी जिंदा हो
और मैं भी ...
दिल ने कहा आँख से
देखा करो कम क्योंकि
देखते हो तुम, तड़पते हैं हम
आँख ने कहा दिल से
सोचा करो कम क्योंकि
सोचते हो तुम, रोते हैं हम
आज फिर टूटेंगी तेरे
घर की नाज़ुक खिड़कियाँ
क्योंकि आज फिर एक दीवाना
तेरे शहर में देखा गया हे
एक तुम को हमें याद
करने की फुर्सत नहीं
एक हम को तुम्हे
भूलने की आदत नहीं
तुम्हे भुलाया भी जाए तो
कैसे सांसो के बिना
जीने की आदत जो नहीं
तेरे ख्याल से खुद को
छुपा के देखा है,
दिल
ओ
नजर को
रुला
रुला के देखा है,
तू नहीं तो कुछ भी
नहीं है तेरी कसम,
मैंने कुछ पल तुझे
भुला के देखा है।
हर तन्हा रात में
एक नाम याद आता है,
कभी सुबह कभी
शाम याद आता है,
जब सोचते हैं कर लें
दोबारा मोहब्बत,
फिर पहली मोहब्बत का
अंजाम याद आता है।
એ દોસ્ત મને તારી દોસ્તી પર ગર્વ છે,
દરેક પલ તને યાદ કરું છુ,
મને ખબર નથી, પણ ઘરવાળા કહે છે કે,
હું ઊંઘ માં પણ તારી સાથે વાત કરું છુ.